सफलता के 3 दुश्मन
काम को प्राथमिकता देना :-
[ ] किसी भी फील्ड में सफल वही इंसान बना है, टॉप पर वही पहुंचा है, औरों के लिए उदाहरण वही बना है जिसने अपने काम को सर्वोच्च प्राथमिकता ( Top Periority) के साथ किया है
[ ] आज हम बात करेंगे कुछ ऐसी आदतें, कुछ ऐसा स्वभाव, कुछ ऐसी मानसिक बीमारियां, कुछ ऐसी प्रैक्टिसेज; जो जब शुरू होती हैं, तो काम पर, • परिणामों पर, कैरियर पर उनके प्रभाव का या उनके होने का कुछ असर महसूस नहीं होता है; पर जब वे हमारा हिस्सा बन जाती हैं, तब उनका असर केवल हमें ही नहीं, बल्कि सबको पता चल जाता है। जी हाँ, मैं बात कर रही हूँ इन तीन शब्दों की जिनका नाम है अलबेलापन, आलस व बहानेबाजी।
वैसे तो ये तीनों शब्द बिल्कुल आसपास के हैं, इनमें कोई ज्यादा अंतर नहीं है; फिर भी एक बार इनके शाब्दिक अर्थ को समझते हैं -
अलबेलापन - गंभीर न होना, हर बात को मजाक में लेना, मस्तमय रहना.......
आलस - काम से बचना, काम को टालना, सुस्ती दिखाना......
बहानेबाजी - झूठ का सहारा लेकर बचाव करना, अपने आपको सही ठहराने के रास्ते खोजना.......
कई बार हम जब किसी जरूरी काम को नजरअंदाज कर देते हैं। और उस नजरअंदाजी का हमें उस समय हमारे काम पर कुछ भी गलत असर दिखाई न दे रहा हो, तो हम उस नजरअंदाजी को हल्के में लेकर इगनोर (Ignore ) कर देते हैं। फिर हम उसकी पुनरावृति भी कर देते और यदि इस बार भी इस घटना से हमारे परिणाम पर होने वाले दुष्प्रभाव हमें दिखाई नहीं दिया; तो ऐसा करना हमारी आदत का , हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है और इसी आदत को अलबेलापन कहते हैं।
[ ] जब कोई काम हमें असुविधाजनक, कठिन या अटपटा लगता है। तो हम उसे टालने की या स्थगित करने की कोशिश करते हैं तथा जब किसी काम को करते हुए हमें आनंद की अनुभूति न हो या उसे करते समय थकावट सी महसूस हो तो उस समय अनिच्छा या सुस्ती की वजह से उस काम को करने की बजाय उससे बचने की कोशिश करते हैं; इस को आलस कहते हैं।
जब हमने किसी से कोई कमिटमेंट कर ली और उस कमिटमेंट को पूरा नहीं कर सके, तो सच्चाई स्वीकारने की हिम्मत करने की बजाय अपने आप का बचाव करने के लिए कोई ना कोई झूठ का सहारा लेना या किसी काम में सफल ना होने पर अपनी कमजोरी का आंकलन करने की बजाय किसी और फैक्टर को दोषी बना देना बहानेबाजी कहलाता है।
जैसा की आपने पढ़ा, ये तीनों एक प्रकार की आदतें ही हैं। ये थोड़ी-बहुत मात्रा में हर व्यक्ति में पाई जाती हैं, पर जब ये व्यक्ति के व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाएं, तो ये आदतें एक विकार का रूप ले लेती हैं और जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व में कोई भी विकार हो, उसे सम्पूर्ण व्यक्तित्व का स्वामी नहीं कहा जा सकता है और ऐसा नहीं है कि ऐसे लोग सफल नहीं होते हैं ; ये सफल तो हो जाते हैं, पर सफलता पर बने रहना इनके बस की बात नहीं होती क्योंकि जैसे ही इनकी असलियत सामने आती है, लोग इन पर या इनकी बातों पर विश्वास करना छोड़ देते
हैं। कुछ समय के बाद लोग इनसे दूरी बनाना शुरू कर देते हैं, जिसका परिणाम इनको उस सफलता से असफलता की ओर ले जाता है।
वैसे तो हर काम में इन आदतों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, पर नेटवर्क मार्केटिंग में इन आदतों का बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है।
[ ] कमजोर पहलु :-
इस व्यवसाय को करने के लिए कोई बहुत बड़ी पूँजी की आवश्यकता नहीं होती है । अपनी जरूरत का सामान खरीदकर इस बिज़नेस की शुरुआत हो जाती है। नेटवर्क मार्केटिंग बिज़नेस का सबसे कमजोर पहलु यही है और शायद इसी वजह से बहुत से लोग इसके प्रति सीरियस ना होकर अलबेलापन, आलस या बहानेबाजी की आदत के शिकार हो जाते हैं। हर व्यक्ति के पास अपना एक सामाजिक दायरा होता है, इस बिज़नेस के परिणामों को देखकर या दूसरे लोगों की सफलता से प्रभावित होकर ज्यादातर लोग कुछ लोगों को इस बिज़नेस से जोड़ भी देते हैं । कई बार तो ऐसा सुनने को भी मिल जाता है कि कई लोगों का प्रभाव का क्षेत्र इतना ज्यादा होता है कि वो एक महीने में बहुत से नए लोगों को स्पॉन्सर कर देते हैं। उनका बिज़नेस भी होने लग जाता है, बिज़नेस चल भी पड़ता है और उनका कोई ना कोई लेवल भी अचीव हो जाता है । कई लोग बड़ी तेज़ी से ग्रो करने लग जाते हैं। कई लोगों को ऐसे लीडर मिल जाते हैं जो बिज़नेस को समझकर बड़े निर्णय ले लेते हैं और बिज़नेस को पूरी स्पीड से दौड़ाना शुरू कर देते हैं; पर दिक्क्त तब आती है जब नीचे की टीम के लोग आपसे बिज़नेस में कोई सपोर्ट चाहते हैं या आपका मार्गदर्शन चाहते हैं या आपको किसी से मिलवाना चाहते हैं या किसी बिज़नेस एक्टिविटी में आपको इन्वॉल्व करना चाहते हैं और वो व्यक्ति अपनी आलस वाली प्रवृत्ति की वजह से या अपने अलबेलेपन वाले मूड के कारण फील्ड में जाने से बचने का कोई बहाना बनाना शुरू करने लग जाता है। हो सकता है शुरू-शुरू में तो लोग उसकी मजबूरी मानकर उसकी बात पर यकीन कर लें, पर बार बार ऐसा करने से उसकी टीम के लोगों में ऐसे व्यक्ति के प्रति सम्मान भाव कम होना शुरू हो जाता है। अब वे बिज़नेस करने से ज्यादा उ व्यक्ति की आदतों पर चर्चा करने में समय लगाना शुरू कर देते हैं। ऐस जरूरी नहीं कि सब जगह ऐसा होता है, पर बहुत सारी जगह इस छोट सी लापरवाही वाली आदत की वजह से पूरा बिज़नेस खराब हो जाता है।
[ ] बिजनेस का आधार है हम :-
ऐसा नहीं है कि इस बिज़नेस में उनके सपोर्ट किये बिना आप सफल नहीं हो पाओगे या आपकी हेल्प मिले बिना वो सफल नहीं हो पाएंगे। कुछ चीजों में मैं आपसे बेहतर हो सकती हूँ और कुछ चीजों में आप मेरे से बेहतर हो सकते हैं; पर यदि हम दोनों मिल जाएं तो हम बहुत सारी चीजों में बेहतर हो सकते हैं। यह बिज़नेस " मैं " की बजाय " हम " का है। यही इस बिज़नेस का आधार है। यह तो एक टीमवर्क का बिज़नेस है, पर समझने वाला विषय यह है कि आपकी टीम को आपसे ज्यादा चार्जिंग कोई और नहीं दे सकता है । यहाँ हर व्यक्ति अपने बिज़नेस का स्वयं मालिक होता है, पर फिर भी मैं यह बताना चाहूंगी कि इस बिज़नेस में लोग आपके लिए तब काम करेंगे, जब आप उनको उनके लिए काम करते हुए नजर आएँगे। लोग आपको तब फॉलो करेंगे, जब आप उन्हें घर की बजाय फील्ड में या लोगों के घर में होम मीटिंग करते हुए नजर आएँगे । लोग आपको अपना आदर्श तब मानेंगे, जब आप इन बीमारियों अलबेलापन, टालमटोल, आलस, बहानेबाजी को छोड़ देंगे और फुर्तीले चुस्त-दुरुस्त, एक्टिव, लक्ष्य केंद्रित, परिणाम केंद्रित, जोशीले, जुनूनी, जिद्दी, कर्मठ, जिज्ञासु नजर आने लगेंगे ।
अलबेलापन, आलस, बहानेबाजी आपको व आपके बिज़नेस की गति को कम करते हैं । इन आदतों की वजह से आप आक्रामक मोड की। बजाय रक्षात्मक मोड में रहने के आदि बन जाते हैं। यह बिज़नेस मोमेंटम बेस बिज़नेस है, यह रक्षात्मक मोड में रहने से नहीं चलता है । यहाँ कामयाब होने के लिए आपको हर समय उत्साह में रहने की जरूरत होती है ।

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