डायरेक्ट सेलिंग एक बदलाव

Direct selling

[ ] डायरेक्ट सेल्लिंग एक बदलाव है, समय के साथ परिवर्तन ही संसार का नियम है । यह बदलाव है विचारो का , यह बदलाव हैै सोच का ,  पारंपरिक दुकान से सामान खरीदने का ।

🔹यह बदलाव है सामान खरीदने के तरीके में व व्यापार करने के तरीके में बदलाव । डायरेक्ट सेल्लिंग आने वाले समय का बहुत बड़ा व्यापार बनेगा। इस व्यापार के बढ़ने से जहाँ ग्राहक को सही रेट व सही क्वालिटी का सामान मिलेगा,

वहीं इस बड़े टर्न ओवर में से बिचौलियों को जाने वाला प्रॉफिट जब उपभोक्ताओं में बंटेगा तो यही उपभोक्ता इस टर्न ओवर के व इस इंडस्ट्री के मालिक बनेंगे।

🔹आज बहुत सी कंपनी व बहुत से लोग इस सेक्टर में काम कर रहे हैं। कुछ सफल हैं, तो कुछ असफल हैं। कुछ काम कर रहे हैं, तो कुछ करने की सोच रहे हैं। कुछ इस सेक्टर से जुड़ना चाहते हैं, तो कुछ सवालों में उलझे हुए हैं। कुछ अपने तरीके से काम कर रहे हैं, तो कुछ सिस्टम से काम कर रहे हैं।

    
डायरेक्ट सेलिंग एक बदलाव








[ ] डायरेक्ट सेलिंग के महारूप को पहचाने :- 

मुद्दा तो ये है कि जब ये इंडस्ट्री इतना बड़ा रूप लेने वाली है, वर्ष 2025 तक इसका टर्न ओवर 65000 करोड़ का होने की संभावनाएं जताई जा रही है ,तो यह बात लोगों के समझ में इतनी आसानी से क्यों नहीं आ रही है या जिनके समझ में आ गई है; उनमें से ज्यादा संख्या में कामयाब क्यों नही हो पा रहे हैं?

इस इंडस्ट्री में जो लोग आते हैं, उनमें से कुछ तो इस इंडस्ट्री से अपरिचित होते हैं और कुछ इस इंडस्ट्री से परिचित होते हैं,

[ ] डायरेक्ट सेलिंग से अपरिचित लोगो का पहला वर्ग : -

पहले बात करते हैं उन लोगों की, जो इस इंडस्ट्री में आने से पहले इस इंडस्ट्री से अपरिचित होते हैं - ये लोग इस इंडस्ट्री में आने से पहले इसके बारे में ज्यादा जानते नहीं हैं। इन लोगों को मैं 2 वर्गों में बांटते हैं। पहले वो जो इस इंडस्ट्री के बारे में ज्यादा जानते तो नहीं हैं, पर इस इंडस्ट्री में कामयाब किसी व्यक्ति की इनकम या लाइफ स्टाइल से प्रभावित होकर इस इंडस्ट्री में यह इरादा लेकर आते हैं कि यह इंडस्ट्री मेरे लिए भी एक बड़ी ऑपोर्चुनिटी बन सकती है, मुझे भी इसमें कामयाबी मिल सकती है। मुझे जो बताया जाएगा, मैं उसका पूरा पालन करूंगा । अपने पिछले काम के अनुभव का, अपनी शैक्षणिक योग्यता का, अपने पद और प्रतिष्ठा का प्रयोग किये बिना, अपना दिमाग लगाए बिना जो मुझसे करने को कहा जाएगा, मैं करूंगा । इस सिस्टम के अनुरूप अपने आपको जहाँ भी व जिस भी तरीके से बदलने को बोला जाएगा, तो बदलूंगा । अच्छा विद्यार्थी बनकर सीखूंगा व अच्छे श्रोता की तरह सुनूंगा । ऐसा करने वाले यहाँ ना केवल सफल होते हैं, बल्कि इस इंडस्ट्री के अच्छे लीडर, अच्छे गुरु व अच्छे वक्ता बनते हैं। 

[ ]  वर्ग दूसरा : -

दूसरी श्रेणी में वो आते हैं जो इन्हीं की तरह इस इंडस्ट्री से तो अनजान थे, पर आने के बाद यहाँ के जानकार लोगों को अपनी राय देना शुरू कर देते हैं, हर काम में टांग अड़ाना वो अपना अधिकार समझते हैं, अपने पद, प्रतिष्ठा या योग्यता का अहंकार उनकी हर एक्टिविटी, हर निर्णय व हर बात में झलकता है । हर चीज को अपने अनुरूप होने की आकांक्षा उनकी बातों से दिखाई देती है, खुद को बदलने की बजाय लोगों को व सिस्टम को बदलने में उनकी रूचि होती है। दूसरों में गलतियां ढूंढना या कमियां देखना उनकी आदत का हिस्सा रहता है । इनमें ऊर्जा, क्षमता या योग्यता की कोई कमी नहीं होती है, पर इन आदतों की वजह से जितने दिन भी यहाँ काम करते हैं. ये असंतुष्ट ही रहते हैं। यदि इनका सीनियर समझदारी पूर्वक काम करके इनको सही हैंडल कर पाए तो ठीक, अन्यथा कुछ समय के बाद ये लोग इस इंडस्ट्री के बारे में गलत धारणाएं बनाकर या तो इस इंडस्ट्री से आउट हो जाते हैं या अपने इस अनुभव का प्रयोग कहीं और करते हुए नजर आते हैं। ।


[ ] इंडस्ट्री से परिचित लोग :-

अब बात करते हैं उन लोगों की जो इस इंडस्ट्री से पहले से परिचित होते हैं - ये लोग इस इंडस्ट्री के बारे में कुछ न कुछ पहले से ही जानते हैं, कहीं न कहीं 2-4 जगह हाथ आजमाए हुए होते हैं, कुछ लोग कई कंपनियों का अनुभव लेकर एक अच्छे सिस्टम की तलाश में भी होते हैं; इन लोगों को हम भी 2 वर्गों में बाटते हैं । एक वो जो घूम-फिर ,परेशान होकर, गलत कंपनियों से दुखी होकर एक विश्वास लेकर आते है कि इंडस्ट्री तो सही है और सपने भी पूरे हो सकते है लेकिन यह भी तभी सम्भव है जब एक जगह टिककर काम किया जाय।

▶️दूसरा वर्ग :-

इनको पहले वालो की तरह ज्ञान तो होता है लेकिन उस ज्ञान के बल पर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करते है ।स्पीड वाली शुरूआती सफलता का या पुराने ज्ञान का अहंकार उनकी बड़ी सफलता में बाधा बन जाता है क्योंकि उनकी हर बात से अहम की बू आती है । वो किसी को मानते नहीं और किसी की मानते नहीं, उनकी टीम में सही डुप्लीकेशन नहीं हो पाता है; सीनियर को सुनने की बजाय सुनाने पर उनका ध्यान आ जाता है; उनका बिज़नेस व लेवल स्थिर हो जाता है; जिसकी वजह से इनकम बढ़ने की बजाय या तो स्थिर हो जाती है या कम होने लग जाती है। सिस्टम पर शक करना शुरू कर देते हैं, किसी को एडिफाई करने की बजाय उसमें कमियां देखना शुरू कर देते हैं, अव्यवसायिक तरीके अपनाने की कोशिश करते हैं, निराशा उनके चेहरे पर साफ़ झलकना शुरू कर देती है, कुछ समझने व सीखने की बजाय " मुझे सब पता है " की बीमारी इनकी असफलता का कारण बनने में इनकी बहुत मदद करती है, अपने कहे गए शब्दों या किये गए वायदों का कोई महत्व नहीं रखते हैं और कुछ समय के बाद इनका इधर उधर तांकझांक करना फिर से शुरू हो जाता है। ये आदतें या धारणाएं ही वे ताले हैं जो उनकी कामयाबी में सबसे बड़ा रोड़ा बन जाते हैं। बहुत कुछ व बहुत बड़ा करने का मादा उनमें था, पर इन कुछ मनमानियों या धारणाओं या आदतों की वजह से वे वो नहीं कर पाते हैं, जो वो कर सकते थे ।

[ ] धारणाओं के वशीभूत : -

[ ] इस प्रकार की धारणाएं केवल इस इंडस्ट्री में जुड़े हुए या काम करने वाले लोगों में ही नहीं होती हैं, अपितु इस इंडस्ट्री से बाहर बैठे हुए लोगों में भी पाई जाती हैं और उन्होंने भी ऐसे-ऐसे ताले लगा रखे हैं जिनकी चाबी बहुत से लोगों के पास होती नहीं है । जब किसी नए व्यक्ति को इस इंडस्ट्री के बारे में बताया जाता है तो वह भी पूरी बात सुने बिना ही इस इंडस्ट्री के बारे में कुछ भी बोल देता है। यह उस व्यक्ति के लिए एक बहुत बड़ा अवसर हो सकता था यदि वो ढंग से सुने तो ; पर वो तो वही भाषा बोलता है जो उसके दिमाग के सॉफ्टवेयर में पहले से फीड है या उसने इस इंडस्ट्री के बारे में जो धारणाएं पहले से बनाई हुई हैं।

 धारणाएं अपने आप नहीं बनती हैं, बल्कि इन्हें बनाया जाता है। कुछ देखकर बनती हैं, कुछ सुनकर बनती हैं, कुछ कई तरह के या कई कंपनियों के अनुभव से बनती हैं; पर कुछ महानुभाव तो ऐसे भी हैं। जो कुछ करने की बजाय केवल ये धारणाएं बनाने में ही लगे रहते हैं । सबसे ज्यादा हैरानी तो तब होती है जब यह देखने में आता है कि लोग इन धारणाओं को पालने-पोसने व संजो कर रखने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। यहाँ तक भी देखा गया है कि यदि कोई व्यक्ति इनके सामने इनकी इन धारणाओं के बारे में छोटी सी भी टिक्का टिप्पणी कर दे या तथ्यों की बात बता दे तो ये लोग बहस करने पर भी उतारू हो जाते हैं । मैं ये बिल्कुल भी नहीं कह रही हूँ कि इनकी बातें या धारणाएं गलत हैं; मैं तो यह बताने की कोशिश कर रही हूँ कि इनको जो लगता है कि हम जो जानते हैं केवल वही सही है, यही इनकी भूल है और इसी सोच की वजह से ये किसी की सुनते ही नहीं हैं। यदि बिना पूर्वाग्रहों के ये सामने वाले को सुन लें, तो इस इंडस्ट्री के प्रति इनकी धारणाएं भी बदल सकती हैं : : परन्तु ये ऐसा मौका देते ही नहीं हैं क्योंकि बहुत प्यार करते हैं ये अपनी इन धारणाओं से।

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